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Hindi Poems on Rain: वर्षा ऋतु पर 5 हिन्दी कवितायेँ

Posted by Suresh Kumar
» hindi poems
» Friday, October 7, 2016
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आज इस पोस्ट मे हम आपके लिए बारिश के मौसम और वर्षा ऋतु से संबंधित कविताएँ लिख रहे हैं. इस पोस्ट मे हम 5 सबसे अच्छी और पसंद की जाने वाली Hindi poems on rain लिखेंगे. इस पोस्ट मे दी गयी सभी Poems on ran in hindi किसी दूसरे कवियों के द्वारा लिखी गयी है,  इस से कोई भी हमने या हमारी टीम ने नही लिखी है. हर पोवेम के साथ हम Author/Writer/Poet का नामे लिख रहे है.

तो चलिए अब देर किस बात की तो शुरू करते है अपनी वर्षा ऋतु की कविताएँ को!

1. बूँद टपकी एक नभ से – भवानी प्रसाद मिश्र!

Hindi Poems on Rain


बूँद टपकी एक नभ से,
किसी ने झुक कर झरोके से
कि जैसे हंस दिया हो,
हंस रही – सी आँख ने जैसे
किसी को कस दिया हो;
ठगा – सा कोई किसी की आँख
देखे रह गया हो,
उस बहुत से रूप को रोमांच रोके
सह गया हो।
बूँद टपकी एक नभ से,
और जैसे पथिक
छू मुस्कान, चौंको और घूमे
आँख उस की, जिस तरह
हंसती हुई – सी आँख चूमे,
उस तरह मै ने उठाई आँख
बादल फट गया था,
चन्द्र पर अत हुआ – सा अभ्र
थाड़ा हट गया था।

बूँद टपकी एक नभ से
ये कि जैसे आँख मिलते ही
झरोका बंद हो ले,
और नूपुर ध्वनि झमक कर,
जिस तरह दुत छंद हो ले,
उस तरह बादल सिमट कर,
चन्द्र पर छाय अचानक,
और पानी के हज़ारों बूँद
तब आये अचानक।

2. भीग रहा है गाँव – अखिलेश कुमार सिंह


मुखिया के टपरे हरियाये
बनवारी के घाव
सावन की झांसी में गुमसुम
भीग रहा है गाँव
धन्नो के टोले का तो
हर छप्पर छलनी है
सब की सब रातें अब तो
आँखों में कटनी हैं
चुवने घर में कहीं नहीं
खटिया भर सूखी ठाँव

निंदियारी आँखें लेकर
खेतों में जाना है
रोपाई करते करते भी
कजली गाना है
कीचड़ में ही चलते चलते
सड़ जाएंगे पाँव

3. रिम झिम बरस रहा है पानी – राजीव कृष्ण सक्सेना


गड़ गड़ गड़ गड़ गरज गरज घन
चम चम चमक बिजुरिया के संग
ढम ढम ढम ढम पिटा ढिंढोरा
झूम उठा सारा जन जीवन
उमड़ घुमड़ कर मेघों नें अब
आंधी के संग करी चढ़ाई
तड़क तड़क तड़िता की सीढ़ी
उतर गगन से वर्षा आई

अरसे से बेहाल धरा पर
सूखे वृक्षों पर खेतों पर
झूम बदरिया छाई घिर घिर
ताप धरा का हरने को फिर

बुनी चुनरिया उसने धानी
रिम झिम बरस रहा है पानी

भटक रहे थे प्यासे प्यासे
पंछी इधर उधर बौराए
थक निढाल हो कर सुस्ताते
पथिक किनारे पर मुरझाए

झुलसाने वाली गर्मी से
त्राण सभी पाते हैं प्राणी
तुरहि बजाओ थाल सजाओ
आ पहुंची है वर्षा रानी

सोंधी सोंधी उठी सुगंधी
पवन हो गयी ठंडी ठंडी
उल्लासित तन मन करती है
नव ऋतु की मोहक सारंगी

मस्त पवन करती मनमानी
रिम झिम बरस रहा है पानी

बेमतलब मन की उधेड़बुन
बेमतलब ही मन उदास था
बेमतलब ही गुमसुम गुमसुम
भटक रहा कुछ आसपास था

झीनी झीनी सी बूंदें अब
चेहरे पर नवजीवन भरतीं
और अनमनी सी लट पर गिर
लटक लटक अठखेली करतीं

कैद उमंगें थीं जिनमें वह
अंतर के बंधन खुलते हैं
और मस्त इन बौछारों में
मैल सभी मन के धुलते हैं

होठों पर अब तान पुरानी
रिम झिम बरस रहा है पानी

इस पल में ऐसा लगता ज्यों
शांत व्यथाएं सभी जगत की
यह पल ऐसा जैसे की सब
भूल गए खटपट जीवन की

इस पल में सब सुधबुध खो कर
मस्त बदरिया को लखते हैं
इस पल में एकाग्र हूआ मन
शोक सभी जग के हटते हैं

कुंठाएं सब भूल समय यह
अवसादों को ढकने का है
यह अमूल्य क्षण शांत खड़े हो
बौछारों को तकने का है

छटा अलौकिक छटा सुहानी
रिम झिम बरस रहा है पानी

कितना है उत्पात जगत में
कितनी हिंसा मारा मारी
और गरीबी बेहाली में
पिसती रहती जनता सारी

आज मगर वर्षा की बूंदों
के गिरने की टप टप ही है
दूर दूर तक खाली सड़कें
राग कोइ वर्षा का गाएं

तारकोल के रंगमंच पर
लाज शर्म सब छोड़ मगन हो
मस्त मुदित मन छाम छाम नाचें
घनदल की प्यारी कान्याएं

तिनक तिनक धिन दिर दिर धानी
रम झिम बरस रहा है पानी

छत का पानी गलियों के
पतनालों से मिलने को उत्सुक
और पेड़ कुछ बहुत यत्न से
धोते हैं पत्तों को गुपचुप

बाहर के आले में भीगी
गौरैया तकती आशंकित
बागीचे में बेल चमेली की
चम्पा को छेड़े छिप छिप

नन्हें बच्चे दीदी से
कागज की नावें बनवाते हैं
भीग भीग कर उनको बाहर
पतनालों में तैराते हैं

किलकारी जानी पहचानी
रिम झिम बरस रहा है पानी

4. मेघ आये बड़े बन ठन के, सँवर के – सर्वेश्वर दयाल सक्सेना


मेघ आये बड़े बन-ठन के, सँवर के।
आगे-आगे नाचती – गाती बयार चली
दरवाजे-खिड़कियाँ खुलने लगी गली-गली
पाहुन ज्यों आये हों गाँव में शहर के।

पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाये
आँधी चली, धूल भागी घाघरा उठाये
बांकीचितवन उठा नदी, ठिठकी, घूँघट सरके।

बूढ़े़ पीपल ने आगे बढ़ कर जुहार की
‘बरस बाद सुधि लीन्ही’
बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की
हरसाया ताल लाया पानी परात भर के।

क्षितिज अटारी गदरायी दामिनि दमकी
‘क्षमा करो गाँठ खुल गयी अब भरम की’
बाँध टूटा झर-झर मिलन अश्रु ढरके
मेघ आये बड़े बन-ठन के, सँवर के।

5. कब बरसेगा पानी - बेकल उत्साही


सावन भादौं साधु हो गए, बादल सब संन्यासी
पछुआ चूस गई पुरवा को, धरती रह गई प्यासी
फसलों ने वैराग ले लिया, जोगी हो गई धानी
राम जाने कब बरसेगा पानी
ताल तलैया माटी चाटै, नदियाँ रेत चबाएँ
कुएँ में मकड़ी जाला ताने, नहरें चील उड़ाएँ
उबटन से गगरी रूठी है, पनघट से बहुरानी
राम जाने कब बरसेगा पानी

छप्पर पर दुपहरिया बैठी, धूप टँगी अँगनाई
द्वार का बरगद ठूँठ हो गया, उजड़ गई अमराई
चौपालों से खलिहानों, तक सूरज की मनमानी
राम जाने कब बरसेगा पानी

पिघल गया चेहरों का सोना, उतर गई महताबी
गोरी बाँहें हुईं साँवरी, बुझ गए नयन गुलाबी
सपने झुलस गए राधा के, श्याम हुए सैलानी
राम जाने कब बरसेगा पानी

बाज़ारों में मँहगाई की बिखर गई तस्वीरें
हमदर्दों के पाँव पड़ गई वादों की जंजीरें
सँसद की कुरसी में धँस गई खेती और किसानी
राम जाने कब बरसेगा पानी

तो ये थी हमारी hindi poems on rain की लिस्ट. हम उमीद करते है की आपको ये poems in rain in hindi ज़रूर पसंद आई होगी. फिर भी अगर आपको कोई कमी लगी हो तो कृपया अपनी राय नीचे दिए कॉमेंट बॉक्स मे ज़रूर दे!
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