Hindi Writing

  • Home
  • About Us
  • Hindi Poems
  • Hindi quotes
  • Hindi Speech
  • Privacy Policy
  • Disclaimer
  • Contact
ad1

Hindi Poems on Nature - प्रकृति पर 21 हिन्दी कवितायेँ

Posted by Suresh Kumar
» hindi poems, » Hindi Poems on Nature, » hindi quotes, » poems on nature in hindi
» Sunday, December 25, 2016
ad2
ad3

21+ Best Hindi Poems on Nature - प्रकृति पर हिन्दी कवितायेँ


आप आज के हमारे इस article मे Hindi Poems on Nature पर आधारित कुच्छ कविताएँ पढ़ेंगे. कहा भी है प्रकृति है तो हम है प्रकृति के बिना हम कुच्छ भी नहीं!

आज हमने इस पोस्ट को अपडेट किया है और लेटेस्ट पोवेम्स ओं नेचर इन हिन्दी आड किया है. इस पोस्ट मे एक सेक्षन और आड किया गया है, " प्रकृति - एक सोच".

इस पोस्ट मे जो Prakriti par kavita लिखी गयी है वो हम सबको प्रकृति के प्रति जागरूक करता है की कैसे हमारी प्रकृति दिन पर दिन बिगड़ती जा रही है. इसी वजह से हम ये Prakriti par kavita in hindi मे लिख रहे है. उमीद करते है की ये Hindi poems on nature आपको इस तरफ ध्यान देने के लिए उत्सुक करेंगे.

ये प्रकृति पे आधारित Hindi Poems अलग अलग कवियों की रचनाएँ है जिनके नाम हर Poem के साथ दिया गया है.

हम उमीद करते है की आप लोगों को ये Poems on Hindi Nature पर आर्टिकल और हमारी एक छ्होटी सी कोशिश आपको पसंद आएगी!

इतना ही नही ये Hindi Poems on Nature स्कूल मे पढ़ने वेल विधार्थीयों के भी काम आएगा. स्टूडेंट अपने होमे वर्क और क्लास वर्क के लिए भी इस्तेमाल कर सकते है.

प्रकृति के विषय को समझने के लिये इस पर आसान भाषण और निबंध दिये जा रहे है। प्रकृति हमारे जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है जिसके बारे में हमें अपने बच्चों को बताना चाहिये। हमारे आस-पास सब कुछ प्रकृति है जो बहुत खूबसूरत पर्यावरण से घिरी हुई है। हम हर पल इसे देख सकते है और इसका लुफ्त उठा सकते है। हम हर जगह इसमें प्राकृतिक बदलावों को देखते, सुनते, और महसूस करते है। प्रकृति के पास हमारे लिये सब कुछ है लेकिन हमारे पास उसके लिये कुछ नहीं है बल्कि हम उसकी दी गई संपत्ति को अपने निजी स्वार्थों के लिये दिनों-दिन बरबाद कर रहे है। आज के आधुनिक तकनीकी युग में रोज बहुत सारे आविष्कार हो रहे जिसका हमारी पृथ्वी के प्रति फायदे-नुकसान के बारे में नहीं सोचा जा रहा है।

चलिए तो अब हम अपनी प्रकृति के उपर कविताएँ वाली लिस्ट स्टार्ट करते है!


#1 Hindi Poems on Nature - तेरी याद सा मोसम (डॉ कुशल चन्द कटोच)


ह्बायों के रुख से लगता है कि रुखसत हो जाएगी बरसात
बेदर्द समां बदलेगा और आँखों से थम जाएगी बरसात .
अब जब थम गयी हैं बरसात तो किसान तरसा पानी को
बो वैठा हैं इसी आस मे कि अब कब आएगी बरसात .
दिल की बगिया को इस मोसम से कोई नहीं रही आस
आजाओ तुम इस बे रूखे मोसम में बन के बरसात .
चांदनी चादर बन ढक लेती हैं जब गलतफेहमियां हर रात
तब सुबह नई किरणों से फिर होती हें खुसिओं की बरसात .
सुबह की पहली किरण जब छू लेती हें तेरी बंद पलकें
चारों तरफ कलिओं से तेरी खुशबू की हो जाती बरसात .
नहा धो कर चमक जाती हर चोटी धोलाधार की
जब पश्चिम से बादल गरजते चमकते बनते बरसात

– डॉ कुशल चन्द कटोच


Hindi Poems on Nature

#2 Hindi Poems on Nature - टूटे दरख़्त (सुलोचना वर्मा)


क्यूँ मायूस हो तुम टूटे दरख़्त
क्या हुआ जो तुम्हारी टहनियों में पत्ते नहीं
क्यूँ मन मलीन है तुम्हारा कि
बहारों में नहीं लगते फूल तुम पर
क्यूँ वर्षा ऋतु की बाट जोहते हो
क्यूँ भींग जाने को वृष्टि की कामना करते हो
भूलकर निज पीड़ा देखो उस शहीद को
तजा जिसने प्राण, अपनो की रक्षा को
कब खुद के श्वास बिसरने का
उसने शोक मनाया है
सहेजने को औरों की मुस्कान
अपना शीश गवाया है
क्या हुआ जो नहीं हैं गुंजायमान तुम्हारी शाखें
चिडियों के कलरव से
चीड़ डालो खुद को और बना लेने दो
किसी ग़रीब को अपनी छत
या फिर ले लो निर्वाण किसी मिट्टी के चूल्‍हे में
और पा लो मोक्ष उन भूखे अधरों की मुस्कान में
नहीं हो मायूस जो तुम हो टूटे दरख़्त……

_ सुलोचना वर्मा


#3 Hindi Poems on Nature - काँप उठी…..धरती माता की कोख !! (डी. के. निवातियाँ)


कलयुग में अपराध का
बढ़ा अब इतना प्रकोप
आज फिर से काँप उठी
देखो धरती माता की कोख !!
समय समय पर प्रकृति
देती रही कोई न कोई चोट
लालच में इतना अँधा हुआ
मानव को नही रहा कोई खौफ !!

कही बाढ़, कही पर सूखा
कभी महामारी का प्रकोप
यदा कदा धरती हिलती
फिर भूकम्प से मरते बे मौत !!

मंदिर मस्जिद और गुरूद्वारे
चढ़ गए भेट राजनितिक के लोभ
वन सम्पदा, नदी पहाड़, झरने
इनको मिटा रहा इंसान हर रोज !!

सबको अपनी चाह लगी है
नहीं रहा प्रकृति का अब शौक
“धर्म” करे जब बाते जनमानस की
दुनिया वालो को लगता है जोक !!

कलयुग में अपराध का
बढ़ा अब इतना प्रकोप
आज फिर से काँप उठी
देखो धरती माता की कोख !!

_ डी. के. निवातियाँ


#4 Hindi Poems on Nature - चन्द्र (सुलोचना वर्मा)


ये सर्व वीदित है चन्द्र
किस प्रकार लील लिया है
तुम्हारी अपरिमित आभा ने
भूतल के अंधकार को
क्यूँ प्रतीक्षारत हो
रात्रि के यायावर के प्रतिपुष्टि की
वो उनका सत्य है
यामिनी का आत्मसमर्पण
करता है तुम्हारे विजय की घोषणा
पाषाण-पथिक की ज्योत्सना अमर रहे
युगों से इंगित कर रही है
इला की सुकुमार सुलोचना
नही अधिकार चंद्रकिरण को
करे शशांक की आलोचना

_सुलोचना वर्मा


#5 Hindi Poems on Nature - फूल (शिशिर मधुकर)


हमें तो जब भी कोई फूल नज़र आया है
उसके रूप की कशिश ने हमें लुभाया है
जो तारीफ़ ना करें कुदरती करिश्मों की
क्यों हमने फिर मानव का जन्म पाया है.

_शिशिर मधुकर


#6 Hindi Poems on Nature - जाड़ों का मौसम … (स्वाति नैथानी)


लो, फिर आ गया जाड़ों का मौसम ,
पहाड़ों ने ओढ़ ली चादर धूप की
किरणें करने लगी अठखेली झरनों से
चुपके से फिर देख ले उसमें अपना रूप ।

ओस भी इतराने लगी है
सुबह के ताले की चाबी
जो उसके हाथ लगी है ।

भीगे पत्तों को अपने पे
गुरूर हो चला है
आजकल है मालामाल
जेबें मोतियों से भरीं हैं ।

धुंध खेले आँख मिचोली
हवाओं से
फिर थक के सो जाए
वादियों की गोद में ।

आसमान सवरने में मसरूफ है
सूरज इक ज़रा मुस्कुरा दे
तो शाम को
शरमा के सुर्ख लाल हो जाए ।

बर्फीली हवाएं देती थपकियाँ रात को
चुपचाप सो जाए वो
करवट लेकर …

_स्वाति नैथानी


#7 Hindi Poems on Nature - कहर………….. (धर्मेन्द्र कुमार निवातियाँ)


रह रहकर टूटता रब का कहर
खंडहरों में तब्दील होते शहर
सिहर उठता है बदन
देख आतंक की लहर
आघात से पहली उबरे नहीं
तभी होता प्रहार ठहर ठहर
कैसी उसकी लीला है
ये कैसा उमड़ा प्रकति का क्रोध
विनाश लीला कर
क्यों झुंझलाकर करे प्रकट रोष

अपराधी जब अपराध करे
सजा फिर उसकी सबको क्यों मिले
पापी बैठे दरबारों में
जनमानष को पीड़ा का इनाम मिले

हुआ अत्याचार अविरल
इस जगत जननी पर पहर – पहर
कितना सहती, रखती संयम
आवरण पर निश दिन पड़ता जहर

हुई जो प्रकति संग छेड़छाड़
उसका पुरस्कार हमको पाना होगा
लेकर सीख आपदाओ से
अब तो दुनिया को संभल जाना होगा

कर क्षमायाचना धरा से
पश्चाताप की उठानी होगी लहर
शायद कर सके हर्षित
जगपालक को, रोक सके जो वो कहर

बहुत हो चुकी अब तबाही
बहुत उजड़े घरबार,शहर
कुछ तो करम करो ऐ ईश
अब न ढहाओ तुम कहर !!
अब न ढहाओ तुम कहर !!

_धर्मेन्द्र कुमार निवातियाँ


#8 Hindi Poems on Nature - दिनकर (सुलोचना वर्मा)


मेरी निशि की दीपशिखा
कुछ इस प्रकार प्रतीक्षारत है
दिनकर के एक दृष्टि की
ज्यूँ बाँस पर टँगे हुए दीपक
तकते हैं आकाश को
पंचगंगा की घाट पर
जानती हूँ भस्म कर देगी
वो प्रथम दृष्टि भास्कर की
जब होगा प्रभात का आगमन स्न्गिध सोंदर्य के साथ
और शंखनाद तब होगा
घंटियाँ बज उठेंगी
मन मंदिर के कपाट पर
मद्धिम सी स्वर-लहरियां करेंगी आहलादित प्राण
कर विसर्जित निज उर को प्रेम-धारा में
पंचतत्व में विलीन हो जाएगी बाती
और मेरा अस्ताचलगामी सूरज
क्रमशः अस्त होगा
यामिनी के ललाट पर

_सुलोचना वर्मा


#9 Hindi Poems on Nature - संभल जाओ ऐ दुनिया वालो (डी. के. निवातियाँ )


संभल जाओ ऐ दुनिया वालो
वसुंधरा पे करो घातक प्रहार नही !
रब करता आगाह हर पल
प्रकृति पर करो घोर अत्यचार नही !!
लगा बारूद पहाड़, पर्वत उड़ाए
स्थल रमणीय सघन रहा नही !
खोद रहा खुद इंसान कब्र अपनी
जैसे जीवन की अब परवाह नही !!

लुप्त हुए अब झील और झरने
वन्यजीवो को मिला मुकाम नही !
मिटा रहा खुद जीवन के अवयव
धरा पर बचा जीव का आधार नहीं !!

नष्ट किये हमने हरे भरे वृक्ष,लताये
दिखे कही हरयाली का अब नाम नही !
लहलाते थे कभी वृक्ष हर आँगन में
बचा शेष उन गलियारों का श्रृंगार नही !

कहा गए हंस और कोयल, गोरैया
गौ माता का घरो में स्थान रहा नही !
जहाँ बहती थी कभी दूध की नदिया
कुंए,नलकूपों में जल का नाम नही !!

तबाह हो रहा सब कुछ निश् दिन
आनंद के आलावा कुछ याद नही
नित नए साधन की खोज में
पर्यावरण का किसी को रहा ध्यान नही !!

विलासिता से शिथिलता खरीदी
करता ईश पर कोई विश्वास नही !
भूल गए पाठ सब रामयण गीता के,
कुरान,बाइबिल किसी को याद नही !!

त्याग रहे नित संस्कार अपने
बुजुर्गो को मिलता सम्मान नही !
देवो की इस पावन धरती पर
बचा धर्म -कर्म का अब नाम नही !!

संभल जाओ ऐ दुनिया वालो
वसुंधरा पे करो घातक प्रहार नही !
रब करता आगाह हर पल
प्रकृति पर करो घोर अत्यचार नही !!

_डी. के. निवातियाँ


#10 Hindi Poems on Nature - उँची उड़ान (सुलोचना वर्मा)


शाश्वत नभ मे उँची उड़ान का,
सपना मैने संजोया था
आसमान वीरान नही था
कुछ लोगो से परिचय भी था
पर चीलो की बस्ती मे
खुद को ही अकेला पाया था
उत्तर गये, दक्षिण गये
पूरब और पश्चिम भी गये
अपने पुलकित पँखो को फैलाकर
सारा जहाँ चहकाया था
जीने की चाह मे जीवन् बीत चला
अब अवशान की बेला आई
सोच रही क्या खोया क्या पाया
जो खोया वो मेरा ही कब था
जो पाया मैने कमाया था
क्षोभ नही इस अनुभव का मुझको
मैं जो भी हूँ इसने बनाया है
सोच रही हूँ घर हो आऊँ,
नभ पे बादल जो छाया है
कल्पनाओ की महज़ उड़ान थी,
आँखे खुली, और ये क्या
धूप निकल आया है

_सुलोचना वर्मा

ये भी ज़रूर पढ़े;

Essay on Environment in Hindi - पर्यावरण पर हिंदी में निबंध
Essay on Pollution in Hindi - पर्यावरण प्रदूषण पर हिंदी निबंध


#11 Hindi Poems on Nature - बाढ़  (शिशिर मधुकर)


नदियों के बहाव को रोका और उन पर बाँध बना डाले
जगह जगह बहती धाराएँ अब बन के रह गई हैं गंदे नाले
जब धाराएँ सुकड़ गई तो उन सब की धरती कब्जा ली
सीनों पर फ़िर भवन बन गए छोड़ा नहीं कुछ भी खाली
अच्छी वर्षा जब भी होती हैं पानी बाँधो से छोड़ा जाता है
वो ही तो फ़िर धारा के सीनों पर भवनों में घुस जाता हैं
इसे प्राकृतिक आपदा कहकर सब बाढ़ बाढ़ चिल्लाते हैं
मीडिया अफसर नेता मिलकर तब रोटियां खूब पकाते हैं

_शिशिर मधुकर


#12 Hindi Poems on Nature - सावन का विज्ञान (शिशिर मधुकर)


सावन का महीना ज्यों ज्यों ही पास आता हैं
उमस भरा मौसम सकल लोगों को सताता हैं
गोरियां राहत के लिए जो उपाय अपनाती हैं
उस से तो सावन में उमंगों की बहार आती हैं
झूलो का पड़ जाना मरा एक निरा बहाना है
असल खेल तो खुद को तपिश से बचाना है
मेहंदी के लाल रंग जब हाथों में लग जाते हैं
उबलते बदनो को वो ठण्डी राहत दिलाते हैं
झूलो के करम से सब पीड़ाएँ जब मिटती हैं
सजना से मिलन को फ़िर हूक सी उठती हैं
इशारों में गा गा कर जो मन के भेद बताते हैं
वही सब तो सावन के मधुर गीत कहलाते हैं
गोरी के मायके से मिठाइयां जो भी आती हैं
वो भी तो पाक मिलन की खुशियां मनाती हैं

_शिशिर मधुकर


#13 Hindi Poems on Nature - इंसा (हेमन्त मोहन)


जरुरी नहीं है फरिश्ता होना ,
इंसा का काफी है इंसा होना ||

हकीकत ज़माने को अब रास नहीं आती,
एक गुनाह सा हो गया है आईना होना ||

बाद में तो… कारवां बनते जाते है,
बहुत मुश्किल है लेकिन पहला होना ||

हवाओं के थपेड़े झेलने पड़ते है, ऊंचाई पे,
तुम खेल समझ रहे हो परिंदा होना ||

ये लोग, जीते जी मरे जा रहे हैं,
मैं चाहता हूँ मौत से पहले जिंदा होना ||

अपनी गलतियों पे भी नजरे झुकती नहीं अब,
लोग भूलने लगे हैं शर्मिंदा होना ||

हर्फे मोहब्ब्त, पढ़ा हमने भी था “मोहन”,देखा भी था
वफ़ा होना खफा होना जफ़ा होना जुदा होना ||

_ हेमन्त मोहन


#14 Hindi Poems on Nature - मौसम बसंत का – शिशिर “मधुकर”


लो आ गया फिर से हँसी मौसम बसंत का
शुरुआत है बस ये निष्ठुर जाड़े के अंत का

गर्मी तो अभी दूर है वर्षा ना आएगी
फूलों की महक हर दिशा में फ़ैल जाएगी
पेड़ों में नई पत्तियाँ इठला के फूटेंगी
प्रेम की खातिर सभी सीमाएं टूटेंगी
सरसों के पीले खेत ऐसे लहलहाएंगे
सुख के पल जैसे अब कहीं ना जाएंगे
आकाश में उड़ती हुई पतंग ये कहे
डोरी से मेरा मेल है आदि अनंत का

लो आ गया फिर से हँसी मौसम बसंत का
शुरुआत है बस ये निष्ठुर जाड़े के अंत का

ज्ञान की देवी को भी मौसम है ये पसंद
वातवरण में गूंजते है उनकी स्तुति के छंद
स्वर गूंजता है जब मधुर वीणा की तान का
भाग्य ही खुल जाता है हर इक इंसान का
माता के श्वेत वस्त्र यही तो कामना करें
विश्व में इस ऋतु के जैसी सुख शांति रहे
जिसपे भी हो जाए माँ सरस्वती की कृपा
चेहरे पे ओज आ जाता है जैसे एक संत का

लो आ गया फिर से हँसी मौसम बसंत का
शुरुआत है बस ये निष्ठुर जाड़े के अंत का

_शिशिर “मधुकर”


#15 Hindi Poems on Nature - बस नही तो वो “ज़िंदगी” (Inder Bhole Nath)


वही छत वही बिस्तर..!
वही अपने सारे हैं……!!
चाँद भी वही तारे भी वही..!
वही आसमाँ के नज़ारे हैं…!!
बस नही तो वो “ज़िंदगी”..!
जो “बचपन” मे जिया करते थे…!!
वही सडकें वही गलियाँ..!
वही मकान सारे हैं…….!!
खेत वही खलिहान वही..!
बागीचों के वही नज़ारे हैं…!!
बस नही तो वो “ज़िंदगी”..!
जो “बचपन” मे जिया करते थे…!!

_Inder Bhole Nath


#16 Hindi Poems on Nature - नई नवेली बारिश (अमोल गिरीश बक्षी)


पके हुए बादलों पर वो नाचती लकीरे
और भुनी हुई मिट्टी का महकना धीरे धीरे

पानी को बोझ ढोते ढोते थककर थम जाना
ठहाकों के कोलाहल से थर्राकर सहम जाना

गोलमटोल बूँदों का गिरना आसमान से छूटकर
और नंगे पाँव आँगन में फिर उछलना फूटकर

जमी तिलमिलाहट का वो पल में पिघल जाना
बेजान सी गर्मी का फिर खुशी में ढल जाना

नई नवेली बारिश का वो मीठा मीठा पानी
साथ वो हो या उन की याद, हो जाए रोमानी

–अमोल गिरीश बक्षी


Hindi poems on nature by Mahadevi Verma


#17 Hindi Poems on Nature - अलि, मैं कण-कण को जान चली (महादेवी वर्मा)


अलि, मैं कण-कण को जान चली

अलि, मैं कण-कण को जान चली,
सबका क्रन्दन पहचान चली।

जो दृग में हीरक-जल भरते,
जो चितवन इन्द्रधनुष करते,
टूटे सपनों के मनको से,
जो सुखे अधरों पर झरते।

जिस मुक्ताहल में मेघ भरे,
जो तारो के तृण में उतरे,
मै नभ के रज के रस-विष के,
आँसू के सब रँग जान चली।

जिसका मीठा-तीखा दंश न,
अंगों मे भरता सुख-सिहरन,
जो पग में चुभकर, कर देता,
जर्जर मानस, चिर आहत मन।

जो मृदु फूलो के स्पन्दन से,
जो पैना एकाकीपन से,
मै उपवन निर्जन पथ के हर,
कंटक का मृदु मन जान चली।

गति का दे चिर वरदान चली,
जो जल में विद्युत-प्यास भरा,
जो आतप मे जल-जल निखरा,
जो झरते फूलो पर देता,
निज चन्दन-सी ममता बिखरा।

जो आँसू में धुल-धुल उजला,
जो निष्ठुर चरणों का कुचला,
मैं मरु उर्वर में कसक भरे,
अणु-अणु का कम्पन जान चली,
प्रति पग को कर लयवान चली।

नभ मेरा सपना स्वर्ण रजत,
जग संगी अपना चिर विस्मित,
यह शूल-फूल कर चिर नूतन,
पथ, मेरी साधों से निर्मित।

इन आँखों के रस से गीली,
रज भी है दिल से गर्वीली,
मै सुख से चंचल दुख-बोझिल,
क्षण-क्षण का जीवन जान चली,
मिटने को कर निर्माण चली!

_महादेवी वर्मा


#18 Hindi Poems on Nature - सजल है कितना सवेरा (महादेवी वर्मा)


सजल है कितना सवेरा

गहन तम में जो कथा इसकी न भूला
अश्रु उस नभ के, चढ़ा शिर फूल फूला
झूम-झुक-झुक कह रहा हर श्वास तेरा

राख से अंगार तारे झर चले हैं
धूप बंदी रंग के निर्झर खुले हैं
खोलता है पंख रूपों में अंधेरा

कल्पना निज देखकर साकार होते
और उसमें प्राण का संचार होते
सो गया रख तूलिका दीपक चितेरा

अलस पलकों से पता अपना मिटाकर
मृदुल तिनकों में व्यथा अपनी छिपाकर
नयन छोड़े स्वप्न ने खग ने बसेरा

ले उषा ने किरण अक्षत हास रोली
रात अंकों से पराजय राख धो ली
राग ने फिर साँस का संसार घेरा

_महादेवी वर्मा


#19 Hindi Poems on Nature - सृजन के विधाता! कहो आज कैसे (गीत - महादेवी वर्मा)


सृजन के विधाता! कहो आज कैसे
कुशल उंगलियों की प्रथा तोड़ दोगे ?
अमर शिल्प अपना बना तोड़ दोगे ?

युगों में गढ़े थे धवल-श्याम बादल,
न सपने कभी बिजलियों ने उगाए
युगों में रची सांझ लाली उषा की
न पर कल्पना-बिम्ब उनमें समाये
बनाए तभी तो नयन दो मनुज के
जहाँ कल्पना-स्वप्न ने प्राण पाए !
हँसी में खिली धूप में चाँदनी भी
दृगों में जले दीप में मेघ छाए !
मनुज की महाप्राणता तोड़कर तुम
अजर खंड इसके कहाँ जोड़ दोगे ?

बनाए गगन और ज्योतिष्क कितने,
बिना श्वास पाषाण ही की कथा है,
युगों में बनाए भरे सात सागर
तृषित के लिए घूंट भी चिर कथा है !
कुलिश-फूल दोनों मिलाकर तुम्हीं ने
गढ़ी नींद में थी कभी एक झांकी
सजग हो तराशा किए मूर्ति अपनी,
कठिन और कोमल सरल और बांकी !
लिए शिव चली जो अथक प्राण गंगा,
इसे किस मरण सिंधु में मोड़ दोगे ?

बने हैं भले देव मंदिर अनेकों
सभी के लिए एक यह देवता है,
स्वयं तुम रहे हो सदा आवरण में
इसी में उजागर तुम्हारा पता है !
सदा अधबनी मूर्ति देती चुनौती,
इसी को कलशदीप्त मंदिर मिलेगा,
न ध्वनि शंख की है, न पूजन न वंदन,
गहन अंध तम में न दीपक जलेगा !
सृजन के विधाता इसी शून्य में क्या
मनुज देवता अधबना छोड़ दोगे ?

कुशल उंगलियों की प्रथा तोड़ दोगे ?
अमर शिल्प अपना बना तोड़ दोगे ?

_महादेवी वर्मा


Hindi poems on nature by Sumitra Nandan Pant


#20 Hindi Poems on Nature - अंतर्धान हुआ फिर देव विचर धरती पर (सुमित्रानंदन पंत)


अंतर्धान हुआ फिर देव विचर धरती पर,
स्वर्ग रुधिर से मर्त्यलोक की रज को रँगकर!
टूट गया तारा, अंतिम आभा का दे वर,
जीर्ण जाति मन के खँडहर का अंधकार हर!

अंतर्मुख हो गई चेतना दिव्य अनामय
मानस लहरों पर शतदल सी हँस ज्योतिर्मय!
मनुजों में मिल गया आज मनुजों का मानव
चिर पुराण को बना आत्मबल से चिर अभिनव!

आओ, हम उसको श्रद्धांजलि दें देवोचित,
जीवन सुंदरता का घट मृत को कर अर्पित
मंगलप्रद हो देवमृत्यु यह हृदय विदारक
नव भारत हो बापू का चिर जीवित स्मारक!

बापू की चेतना बने पिक का नव कूजन,
बापू की चेतना वसंत बखेरे नूतन!

_सुमित्रानंदन पंत

ये भी ज़रूर पढ़े;

Women Empowerment Essay In Hindi- नारी सशक्तिकरण पर निबंध
Global Warming Essay in Hindi- ग्लोबल वार्मिंग पर हिंदी निबंध

#21 प्रकृति पर हिन्दी कवितायेँ - प्रकृति और मनुष्य | बाल कविता


Author: सय्यद अरबाज़

प्रकृति हमारी कितनी प्यारी,
सबसे अलग और सबसे न्यारी,
देती है वो सबको सीख,
समझे जो उसे नज़दीक,
पेड़,पौधे,नदी,पहाड़,
बनाए सुंदर ये संसार,
पेड़ पर लगे विभिन्न पत्ते,
सिखाते हमे रहना एक साथ,
पेड़ की ज़िंदगी जड़ों पर टिकी है,
मनुष्य की ज़िंदगी सत्कर्मों पर टिकी है,
आसमान है ये विशाल अनंत,
मनुष्य की सोंच का भी ना है अंत,
हे मनुष्य! समझो ये बातें सारी,
प्रकृति हमारी कितनी प्यारी,
सबसे अलग और सबसे न्यारी
बूँद-बूँद से बनती है नदी,
एक सोंच से बदले ये सदी,
मनुष्य करता है भेदभाव,
जाने ना प्रकृति का स्वभाव,
सबको होती है प्रकृति नसीब हो अमीर या हो ग़रीब,
मनुष्य की तरह ना परखें,
है अमीर या है ग़रीब,
पेड़ सहता है बढ़ को, लेकर पृथ्वी का सहारा,
मनुष्य सह सके बढ़ को,यदि सब खडें हो लेकर एक दूसरे का सहारा,
करे जो प्रकृति को नाश,
होता है उसका विनाश,
मनुष्य जिए और जीने दे,
मिलकर रहे सब एक साथ,
परखो भैया यह बातें सारी,
प्रकृति हमारी कितनी प्यारी,
सबसे अलग और सबसे न्यारी.
- सय्यद अरबाज़ 


#22 सबका पालन करने वाली (Hindi Poems on Nature)


सबको भोजन देने वाली
मेघा सब बरसाने वाली
धूप को दर्शाने वाली
चाँद सूरज दिखाने वाली
धरती को घुमाने वाली
जीव जन्तु बनाने वाली
खेत में फसल उगाने वाली
ठण्डी हवा चलाने वाली
बादल को गरजाने वाली
धरती को कपाने वाली
प्रकृति है सब करने वाली

– अनुष्का सूरी

प्रकृति - एक सोच

प्रकृति क्या है? भगवान ने कुदरत बनाया था या आज हम कुदरता का सृजन कर रहे है?

एक बात तो बिल्कुल सॉफ है की अगर कुदरत और प्रकृति है तभी हम है. लेकिन आज के टाइम मे जिस तरह से हम लोग पकृति को नष्ट कर रहे है एक बात बिल्कुल सॉफ है की आने वेल समय मे हम अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए बहुत मुश्किलें पैदा करने जा रहे है!

एसलिए हमारे लिए अब ये बहुत ज़रूरी हो गया है की खुद भी प्रकृति की संभाल करे और अपने बचों को भी सिखाए! स्कूल्स और कॉलेजस मे भी एसके लिए कॅंप्स लगने चाहिए, सबको जागरूक करना चाहिए! प्रकीर्ति स्वस्थ रहेगी तभी हम लोग भी स्वस्थ रहेंगे नही तो बहुत सारी ख़तरनाक बीमारियाँ पैदा हो जाएँगी जो की पूरी सृष्टि का संतुला बिगाड़ सकती है!

अगर हमे ग्लोबल वार्मिंग को रोकना है और प्रदूषण की स्मास्या को रोकना है तो हम प्रकीर्ति को बचाने की पूरा ध्यान देना होगा!

हम उम्मीद करते है की इस Hindi poems on nature और एस सोच की ज़रिए जो संदेश दिया है आप उसे मानेंगे और आयेज भी लोगों को बताएँगे!

हमें पूरी आशा है कि आपको हमारा यह Hindi Poems on Nature बहुत ही अच्छा लगा होगा. हमने बहुत कोशिश की और Hindi poems in hindi language मे लिखा! ये Hindi poems on nature by famous poets का जो collection है आप सब बहुत पसंद करेंगे.

तो अब तक आपको ये Poems on nature in Hindi पोस्ट कैसा लगा कॉमेंट करके ज़रूर बताएँ हमे!
ad4

Share this Post on:

TIPS2SECURE

2 comments

avatar
Reply
Amar Pratap delete April 27, 2019 at 5:39 AM

kudrat yaani nature insan ke dil ko tasalli dene ke liye sabse behtar hain kyonki yah kudrat hi to hai jo hamari har jarurat ko poora karti aayi hai. aapki yah kavitaen shayri ke andaj me dhali hui hain padhkar bahut accha laga. agar kabhi avsar mile to jivansutra ke shaandar thoughts padhkar bhi anand uthayen.

avatar
Reply
9hein031jq delete January 21, 2023 at 3:35 PM

Roulette 토토사이트 continues to be on top of each other on line casino sport, adopted by poker. Poker is not favored by people due to its sophisticated rules, while roulette is very straightforward. Live customer support is crucial for such casinos because you by no means know if you may face a problem.

Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to: Post Comments (Atom)
ad5
Powered by Blogger.

Popular Posts

  • 100+ Debate Topics in Hindi for School Debate Competition 2017
    आज इस आर्टिकल मे  Debate Topics in Hindi के बारे मे पढ़ेंगे। "वाद - विवाद" या "बहस" एक बहुत ही बढ़िया टॉपिक है और सा...
  • Mera Parivar Essay in Hindi- मेरे परिवार पर निबंध
    हेलो दोस्तों आज हम इस आर्टिकल में mera parivar essay in hindi मतलब की मेरे परिवार के ऊपर एक बहुत ही बढ़िया निबंध को पढ़ेगें! हम सभी लोगो म...
  • Hindi Poems on Nature - प्रकृति पर 21 हिन्दी कवितायेँ
    21+ Best Hindi Poems on Nature - प्रकृति पर हिन्दी कवितायेँ आप आज के हमारे इस article मे Hindi Poems on Nature पर आधारित कुच्छ कविताएँ प...
  • 50 Hindi Essay Topics - हिन्दी निबंध विषयों की लिस्ट
    आज भी हम आपके लिए एक मजेदार ओर उपयोगी टॉपिक " Hindi Essay Topics " पर पोस्ट लेकर आये है! निबंध भारतीय संस्कृति में बहुत ही पचल...
  • 50+ Diwali Wishes in Hindi: दीवाली की शुभकामनाएँ 2017
    सबसे पहले हमारी ओर से आप सभी को दीवाली की ढेरों शुभकामनाएँ! आज हम इस पोस्ट मे Diwali Wishes in Hindi लिख रहे हैं! आप इन Happy Diwali W...
  • Importance of English Essay in Hindi- अंग्रेजी के महत्व पर निबंध
    हेलो दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम Importance of English Essay in Hindi मतलब की इंग्लिश भाषा के महत्व के बारे में एक निबंध को पढ़ेगें...
Copyrighted © Hindi Writing 2016

Copyright © Hindi Writing. All rights reserved. Published By Kaizen Template - Support KaizenThemes.
New Thesis SEO V3. Designed by CB Blogger. Original Theme: Thesis SEO. Powered by Blogger