कुदरत के आगे ज़ोर चले कोई न। पेड़ गिरते देखे मैंने, बड़ी बड़ी गाड़ियों वाले वीलचेयर पर देखे मैंने,
प्रतिष्ठा पर गरूर था जिनको तनहा रोते देखे है मैंने,
पुलिस के बड़े बड़े अफसर जेलों में जाते देखे है मैंने,
कारोबारियों को घाटा खाकर फांसी लेते देखे है मैंने,
डॉक्टर जिसको मृतक करार दे फिर ज़िंदा होते देखे है मैंने,
दूसरे देशो से आये रहीस पागल होते देखे है मैंने,
भरे प्यार के घरों में हथ्यार चलते भी देखे है मैंने,
एक एहंकारी रावण की तरह और भी मरते देखे है मैंने,
बड़े बड़े तैराक भी डूब के मरते देखे है मैंने,
मान ले कुदरत को तू एह इंसान रख ना कोई एहंकार,
हस्ते खेलते घर यहां पर पल में रुलते हुए देखे हैं मैंने,
फर्श से अर्श पर और अर्श से फर्श पर पल में प्रभु कर देते हैं,
बड़े बड़े कलाकार भी भूखे मरते देखे हैं मैंने,
लगा दे ज़िन्दगी देश या समाज सेवा पर,
ऐसे लोगों के बुत चौंकों में चमकते देखे है मैंने।